
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) के न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम (Justice Manish Kumar Nigam) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें कहा गया है कि —
“यदि विवाह वैध रूप से धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ है, तो उसका रजिस्ट्रेशन न होने पर भी वह विवाह वैध माना जाएगा।”
अर्थात, अगर शादी किसी मान्यता प्राप्त परंपरा (जैसे मुस्लिम निकाह, हिंदू रीति से सात फेरे आदि) के अनुसार हुई है, तो केवल शादी का रजिस्ट्रेशन न होना उसे अवैध नहीं बनाता।
🔹 मुख्य बिंदु:
- रजिस्ट्रेशन केवल प्रमाणिकता (proof) के लिए आवश्यक है, वैधता (validity) के लिए नहीं।
- विवाह अगर धार्मिक रीति से हुआ है — तो पति-पत्नी के अधिकार और दायित्व (rights & obligations) उसी तरह लागू होंगे जैसे रजिस्टर्ड शादी में होते हैं।
- यदि विवाद उत्पन्न हो (जैसे तलाक, भरण-पोषण आदि), तो अदालत ऐसे विवाह को मान्यता दे सकती है और तलाक की कार्यवाही भी संभव है।
- यह फैसला उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो केवल “निकाहनामा” या “फेरे” के आधार पर विवाहित हैं, पर सरकारी विवाह प्रमाणपत्र नहीं बनवाया।
🔸 निष्कर्ष:
➡️ बिना रजिस्ट्रेशन की शादी भी वैध है, बशर्ते वह धार्मिक नियमों के अनुसार की गई हो।
➡️ ऐसे विवाह में तलाक की प्रक्रिया भी वैध रूप से चल सकती है।
