Landmark Ruling: Delhi High Court Upholds Equal Property Rights in Marriage…

⚖️ऐतिहासिक फैसला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक जीवन में समान संपत्ति अधिकारों को बरकरार रखा

दिल्ली उच्च न्यायालय ने संयुक्त वैवाहिक संपत्तियों में समान स्वामित्व अधिकारों को सुदृढ़ करने वाला एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो परिवारों और कानूनी पेशेवरों, दोनों के लिए एक समयोचित अनुस्मारक है।

📜केस अवलोकन:

🔹दंपति ने 1999 में विवाह किया, 2006 में अलग हो गए• बैंक द्वारा मुंबई में संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति ₹1.09 करोड़ में बेची गई

🔹पति ने खरीद मूल्य और ईएमआई के भुगतान का हवाला देते हुए अनन्य स्वामित्व का दावा किया

🔹पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें धन केवल पति को जारी किया गया था

⚖️न्यायालय का निर्णय: न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि:

विवाह के दौरान संयुक्त रूप से अर्जित संपत्तियाँ सामान्य पारिवारिक निधि से आती हैं, जिसमें दोनों पति-पत्नी समान रूप से योगदान करते हैं – चाहे उनकी व्यक्तिगत आय कितनी भी हो या ईएमआई का भुगतान किसने किया हो।

बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम की धारा 4 का हवाला देते हुए, न्यायालय ने पति को एकल स्वामित्व का दावा करने से रोक दिया।

मुख्य परिणाम:

✅पत्नी को बिक्री से प्राप्त राशि का 50% प्राप्त हुआ
✅पति की तलाक याचिका
✅अस्वीकृत/2 लाख रुपये का मासिक भरण-पोषण बरकरार

💡 निष्कर्ष: यह निर्णय विवाहों में लिंग-तटस्थ योगदान – वित्तीय और गैर-वित्तीय दोनों – की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है। यह शुरू से ही संपत्ति के स्वामित्व के स्पष्ट दस्तावेज़ीकरण और आपसी समझ के महत्व पर ज़ोर देता है। जोड़ों और परिवारों के लिए: भविष्य में विवादों से बचने के लिए संपत्ति के समझौतों को जल्द से जल्द औपचारिक रूप देने पर विचार करें।

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