
विवाह-विच्छेद—मानसिक क्रूरता—पति द्वारा प्रस्तुत विवाह-विच्छेद याचिका निरस्त—पति की गवाही, जिसमें पत्नी द्वारा लगातार मौखिक दुव्यवहार, आत्महत्या की धमकियाँ तथा अंततः परित्याग का उल्लेख है, पूरी तरह सुसंगत रही और पत्नी से जिरह के समय अकाट्य रही—यह साक्ष्य यह स्थापित करता है कि पत्नी के आचरण ने पति को निरन्तर मानसिक तनाव व अपमान की स्थिति में रखा जो मानसिक क्रूरता की परिधि में आता है—यह तथ्य निर्विवाद है कि एफ.आई.आर. तथा अन्य कार्यवाहियाँ पत्नी द्वारा बाद में दर्ज कराई गईं जिससे उसकी समस्त घटनावृत्ति की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है—पति के विरुद्ध दहेज-उत्पीड़न तथा ससुर द्वारा कथित छेड़छाड़ के आरोप भी घरेलू मुकद्दमे शुरू हो जाने के बाद ही लगाए गए और उन आरोपों के समर्थन में कोई समकालीन सामग्री उपलब्ध नहीं है; फलतः उन्हें प्रतिक्रियात्मक और अविश्वसनीय माना जाता है—ससुर पर लगाए गए यौन-दुराचरण के आरोप, यदि सही मान भी लिए जाएं तो भी पति-पत्नी के बीच वैवाहिक-सद्भाव पुनः स्थापित होना असंभव है—इन परिस्थितियों में विवाह का अप्रतिहेय (irretrievable) रूप से टूट जाना सिद्ध होता है—अतः पति को विवाह-विच्छेद का डिक्री प्रदान किया जाना उचित है।
