
धारा 498-क एवं 406—वैवाहिक क्रूरता एवं स्त्रीधन —पति के मौसा एवं मौसी के विरुद्ध आरोप—एफ.आई.आर. निरस्तीकरण हेतु याचिका—जहाँ याचिकाकर्ता, जो पति के पार्श्व संबंधी हैं, पत्नी के साथ निवास नहीं करते थे और उनके विरुद्ध लगाए गए आरोप केवल अस्पष्ट कथनों, सामान्य तानों तथा पारिवारिक मतभेद तक सीमित थे, ऐसे आरोप, यद्यपि संपूर्ण रूप में स्वीकार भी कर लिए जाएँ, तब भी धारा 498A भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत “क्रूरता” के तत्वों का प्रकटीकरण नहीं करते—शिकायत में मात्र इस तथ्य का उल्लेख कि “पति के घरवालों ने समस्त स्त्रीधन और उपहार रख लिए हैं एवं वे अभी भी उनके अवैध कब्ज़े में हैं” पर्याप्त आरोप नहीं है—विशिष्ट, गंभीर अथवा विश्वसनीय आरोपों के अभाव में न तो कोई प्रथमदृष्टया मामला बनता है और न ही आरोप तय करने योग्य गंभीर संदेह उत्पन्न होता है—अतएव, याचिकाकर्ताओं के संबंध में प्राथमिकी एवं आपराधिक कार्यवाही निरस्त की जाती है।
