Ranganath v/s State Of Maharashtra: Crl. Writ Pet. No.- 1299/2025…

डिफ़ॉल्ट ज़मानत—न्यायिक रिमांड—धारा 187(3) के आज्ञापक प्रावधान का अनुपालन—स्वतंत्रता का संवैधानिक संरक्षण—जाँच अधिकारी द्वारा न्यायिक-अभिरक्षा के दौरान धारा 316(5) का प्रयोग करते हुए नए या अधिक गंभीर अपराध जोड़े जाने पर यदि धारा 187(3) बी.एन.एस.एस. के वैधानिक प्रावधान का अनुपालन नहीं किया गया है तो ऐसी रिमांड की प्रक्रिया अवैध (vitiated) मानी जाएगी—आरोपी को किसी भी अतिरिक्त आरोप की सूचना (prior notice) पूर्व में दी जानी आवश्यक है तथा न्यायालय के समक्ष आगे की रिमांड पर विचार करने से पूर्व उसे प्रभावी रूप से सुनवाई (effective opportunity of hearing) का अवसर प्रदान किया जाना अनिवार्य है—न्यायिक मजिस्ट्रेट की अभिरक्षा बढ़ाने की शक्ति धारा 187 के तहत निर्धारित 60/90 दिनों की वैधानिक अवधि तक ही सीमित है, जो कि अनिवार्य है—इस अवधि से कोई भी विचलन (deviation) आरोपी के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है तथा पूर्व-विचारण (pre-trial) निरोध पर न्यायिक नियंत्रण को कमजोर करता है।

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