Sajid Chaudhary vs. State of U.P.: अब सिर्फ सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डालना अपराध नहीं माना जाएगा।…

⚖️ इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला ⚖️

👉 अब सिर्फ सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डालना अपराध नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा —
👉 Case title – Sajid Chaudhary vs. State of U.P.
👉पाकिस्तान के समर्थन में की गई सोशल मीडिया पोस्ट पर ‘भारत की संप्रभुता को खतरे में डालने’ का अपराध नहीं चलेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
👉 “धारा 152 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023)” के तहत मुकदमा दर्ज करने से पहले तथ्य-जांच जरूरी है।
👉 हर पोस्ट को राष्ट्रविरोधी बताकर केस दर्ज करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
👉 पुलिस को अब किसी भी विवादित पोस्ट पर कार्रवाई से पहले यह देखना होगा कि क्या उससे वास्तव में देश की संप्रभुता या एकता को नुकसान हो रहा है या नहीं।
👉इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी अन्य देश के समर्थन में संदेश पोस्ट करने मात्र से भारत के नागरिकों में रोष या वैमनस्य पैदा हो सकता है और यह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत दंडनीय भी हो सकता है, लेकिन यह BNS की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य) के कड़े प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आएगा। जस्टिस संतोष राय की पीठ ने साजिद चौधरी नामक व्यक्ति को ज़मानत देते हुए यह टिप्पणी की। साजिद पर ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ वाली एक फ़ेसबुक पोस्ट फ़ॉरवर्ड करने का आरोप है।
👉पीठ के समक्ष साजिद के वकील ने तर्क दिया कि उसने कहीं भी कोई वीडियो पोस्ट/प्रसारित नहीं किया। उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। अगर उसे ज़मानत दी जाती है तो उसके न्याय से भागने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोई संभावना नहीं है। अभियोजन पक्ष ने ज़मानत याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि आवेदक अलगाववादी है। पहले भी इसी तरह के अपराध कर चुका है। हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
यह भी बताया गया कि आवेदक ने पाकिस्तानी व्यक्ति की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “कामरान भट्टी, मुझे आप पर गर्व है, पाकिस्तान ज़िंदाबाद”। अदालत ने कहा कि ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ का उल्लेख करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट की कॉपी संलग्न की गई। हालांकि, अभियोजन पक्ष ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया, जिससे यह पता चले कि आवेदक ने भारत की संप्रभुता और अखंडता के विरुद्ध कोई बयान दिया था। अदालत ने आगे कहा कि BNS की धारा 152 नया प्रावधान है, जिसमें कठोर दंड का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता (IPC) में कोई संबंधित धारा नहीं थी, इसलिए इसे उचित सावधानी से लागू किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, “सोशल मीडिया पर बोले गए शब्द या पोस्ट भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आते हैं, जिसकी संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि वह ऐसी प्रकृति का न हो जो किसी देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करता हो या अलगाववाद को बढ़ावा देता हो।” इसके अलावा, BNS की धारा 152 के दायरे की व्याख्या करते हुए सिंगल जज ने कहा कि मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य अभ्यावेदन, इलेक्ट्रॉनिक संचार का उद्देश्य अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना या अलगाव की भावना को बढ़ावा देना या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालना होना चाहिए।
इसमें यह भी कहा गया कि किसी विदेशी देश का समर्थन करने वाला मात्र सोशल मीडिया मैसेज BNS की धारा 196 के अंतर्गत आ सकता है, जिसके लिए सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है। हालांकि, यह “निश्चित रूप से BNS की धारा 152 के प्रावधानों को लागू नहीं करेगा”। अदालत ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य 2025 लाइवलॉ (एससी) 362 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह दोहराया गया कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान की आधारशिला है। सोशल मीडिया पोस्ट का मूल्यांकन कमज़ोर और अस्थिर मन वाले व्यक्तियों के बजाय “तर्कसंगत, दृढ़-चित्त, दृढ़ और साहसी व्यक्ति” के नज़रिए से किया जाना चाहिए। इस पृष्ठभूमि में मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना अदालत ने साजिद चौधरी को कड़ी शर्तों के अधीन व्यक्तिगत मुचलका और दो जमानतदार प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत दी
👍✒️ यह फैसला सोशल मीडिया पर स्वतंत्र विचारों की आवाज़ को और मज़बूती देता है।

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