विधिक विश्लेषण : उपभोक्ताओं की सहमति के बिना स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाना
विद्युत वितरण निगमों द्वारा उपभोक्ताओं की सहमति के बिना स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जाने की प्रक्रिया विवाद का विषय बन चुकी है। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद और विद्युत कर्मचारी संघर्ष समिति ने इसे न केवल असांविधानिक बल्कि विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है।
2. संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A के अनुसार –
“किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर वंचित नहीं किया जा सकता।”
उपभोक्ता का घर/परिसर उसकी संपत्ति है। उसकी अनुमति के बिना जबरन कोई उपकरण (मीटर) लगाना, संवैधानिक संपत्ति अधिकार का हनन है। साथ ही यह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का भी उल्लंघन है क्योंकि सभी उपभोक्ताओं को विकल्प चुनने का अधिकार प्राप्त है।
3. विधिक प्रावधान
(क) धारा 47(5), विद्युत अधिनियम 2003
“लाइसेंसी उपभोक्ता से सुरक्षा जमा (security deposit) मांग सकता है, किन्तु जहाँ आपूर्ति प्रीपेड मीटर के माध्यम से दी जाती है, वहाँ ऐसा आवश्यक नहीं होगा।”
इस धारा का निहितार्थ है कि प्रीपेड मीटर उपभोक्ता की सहमति पर आधारित विकल्प है, न कि अनिवार्यता।
(ख) धारा 55(1)
“हर उपभोक्ता को विद्युत आपूर्ति मीटरिंग के अधीन दी जाएगी और ऐसा मीटर, उसके उपयोग एवं रख-रखाव की व्यवस्था केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण द्वारा बनाई जाएगी।”
(ग) धारा 177(2)(c)
“केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण को मीटरों की स्थापना, संचालन और रखरखाव से संबंधित विनियम बनाने का अधिकार होगा।”
लेकिन यह शक्ति अधिनियम के मूल प्रावधानों के अधीन है। अर्थात CEA ऐसे नियम नहीं बना सकता जो धारा 47(5) में प्रदत्त विकल्प को समाप्त कर दें।
4. उपभोक्ता अधिकार का उल्लंघन
उपभोक्ता को पोस्टपेड और प्रीपेड दोनों मीटरों में से चुनाव करने का विकल्प होना चाहिए।
बिना अनुमति प्रीपेड मीटर थोपना उपभोक्ता की स्वतंत्र पसंद और अनुबंध की स्वतंत्रता (freedom of contract) का उल्लंघन है।
यह कार्यवाही arbitrary और ultra vires (अधिकार क्षेत्र से बाहर) कही जाएगी।
5. संघर्ष समिति और निजीकरण का मुद्दा
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने जो आपत्ति उठाई है, वह Conflict of Interest के सिद्धांत से जुड़ी है। यदि किसी उच्च पदाधिकारी का संबंध निजीकरण की योजना बनाने वाले संगठन से है, तो उसकी सरकारी भूमिका में निष्पक्षता और पारदर्शिता प्रभावित होती है। न्यायालयों ने कई बार कहा है कि Administrative decisions must be free from bias.
6. न्यायिक दृष्टांत
हालाँकि अभी तक स्मार्ट मीटर विवाद पर कोई प्रत्यक्ष उच्चतम न्यायालय/हाईकोर्ट का निर्णय उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ सामान्य सिद्धांत लागू होते हैं—
E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu (1974) : मनमानी (arbitrariness) ही अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
Maneka Gandhi v. Union of India (1978) :किसी भी प्रशासनिक कार्यवाही को न्यायसंगत, निष्पक्ष और तर्कसंगत होना चाहिए।
इसलिए उपभोक्ता की सहमति बिना मीटर लगाना arbitrary और unreasonable है।
7. निष्कर्ष
उपभोक्ताओं की सहमति के बिना स्मार्ट प्रीपेड मीटरों की स्थापना—
- विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 47(5) के विपरीत है।
- केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के नियम अधिनियम की मूल भावना से बाहर नहीं जा सकते।
- यह संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14 और 300A) का उल्लंघन है।
