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“तलाक के मामले में पत्नी द्वारा पति पर नपुंसकता का आरोप लगाना मानहानि नहीं है: बॉम्बे हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला”

प्रस्तावना
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 499 और 500 मानहानि (Defamation) के अपराध को परिभाषित और दंडित करती हैं। किंतु इन धाराओं में कुछ विशिष्ट “अपवाद” (Exceptions) दिए गए हैं, जो कुछ स्थितियों में कथनों को मानहानि के दायरे से बाहर रखते हैं। इसी संदर्भ में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 17 जुलाई, 2024 को एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि यदि पत्नी ने वैवाहिक मुकदमे के दौरान पति पर नपुंसक (impotent) होने का आरोप लगाया है, तो यह मानहानि नहीं माना जाएगा, क्योंकि यह धारा 499 के अपवाद 9 के अंतर्गत आता है।

मामले की पृष्ठभूमि
इस मामले में एक पत्नी ने वैवाहिक विवाद के दौरान अपने पति के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की, जिसमें उसने पति की नपुंसकता का उल्लेख किया। इस पर पति ने IPC की धारा 499 और 500 के अंतर्गत आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज किया, यह कहते हुए कि उक्त आरोप से उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची है।

मामला बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत को यह तय करना था कि क्या पत्नी द्वारा वैवाहिक याचिका में ऐसा आरोप लगाना वास्तव में मानहानि की श्रेणी में आता है या नहीं।

बॉम्बे हाईकोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति [न्यायाधीश का नाम यदि उपलब्ध हो] की पीठ ने स्पष्ट किया कि:

धारा 499 का अपवाद 9 लागू होता है:
धारा 499 के नौवें अपवाद में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति “अच्छे विश्वास” (Good Faith) में किसी विषय को किसी सक्षम प्राधिकरण के समक्ष उठाता है, तो वह मानहानि नहीं मानी जाएगी।
वैवाहिक याचिका न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा:
जब कोई पक्ष न्यायालय में विवाह-विच्छेद या निष्क्रियता जैसे कारणों के आधार पर याचिका दाखिल करता है, तो उसमें किए गए कथन न्यायिक कार्यवाही का हिस्सा होते हैं। ऐसे कथनों को तभी दंडनीय माना जाएगा, जब वे दुर्भावनापूर्ण या दुर्भावना से प्रेरित हों।
पत्नी की ओर से तथ्यात्मक आरोप:
पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप वैवाहिक संबंधों की सत्यता और उनके असफल होने के कारणों से संबंधित थे। इस प्रकार, उन्हें मानहानि नहीं माना जा सकता, विशेषतः जब वे न्यायिक प्रक्रिया में उठाए गए हों।

धारा 499 और 500 का कानूनी संदर्भ

धारा 499 (IPC): यह धारा उस स्थिति को परिभाषित करती है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने हेतु कोई कथन करता है। परंतु इसमें 10 अपवाद दिए गए हैं जिनमें आने वाले कथनों को मानहानि नहीं माना जाएगा।
धारा 500 (IPC): यह धारा धारा 499 के तहत किए गए अपराध के लिए दो साल तक की कारावास, जुर्माना या दोनों का प्रावधान करती है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Observations):

न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों में पति या पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप, यदि वे विश्वास के आधार पर किए गए हैं और न्यायिक प्रक्रिया के भीतर हैं, तो उन्हें आपराधिक दंड के रूप में नहीं देखा जा सकता।
इस प्रकार के आरोप वैवाहिक मामलों की प्रकृति के कारण आवश्यक रूप से तथ्यों के निर्धारण हेतु किए जाते हैं, न कि बदनामी के उद्देश्य से।

फैसले का महत्व

यह निर्णय व्यक्तिगत अधिकारों और वैवाहिक विवादों में पक्षों की वैध अभिव्यक्ति के अधिकार के बीच संतुलन बनाता है।
यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि वैवाहिक मुकदमों को सिर्फ आपराधिक मानहानि का डर दिखाकर दबाया न जा सके।
यह मानहानि कानून की सीमाओं और अपवादों की व्याख्या को स्पष्ट करता है।

निष्कर्ष
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला उन मामलों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगा, जहां वैवाहिक विवादों के दौरान पति-पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों को मानहानि का मामला बनाकर अलग दिशा दी जाती है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि ऐसे आरोप “सद्भावना” और “न्यायिक प्रक्रिया” के तहत लगाए जाते हैं, तो वे दंडनीय नहीं हैं। यह न्यायिक दृष्टिकोण न केवल निष्पक्षता को बढ़ावा देता है, बल्कि विवाह विवादों में पक्षकारों को अपनी बात खुलकर रखने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है।

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