Arunachala Gounder v/s Ponnusamy (Civil Appeal No. 6659 of 2011, AIR 2022 SC 695) हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act, 1956)…

_सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक निर्णय ❗ Arunachala Gounder v. Ponnusamy (Civil Appeal No. 6659 of 2011, AIR 2022 SC 695) हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act, 1956) और विशेषकर धारा 15 के अनुप्रयोग पर आधारित है।


इसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई महिला हिंदू बिना वसीयत (intestate) मरे और उसकी कोई संतान न हो, तो माता-पिता से प्राप्त संपत्ति उसके पति या पति के परिजनों को नहीं बल्कि उसके अपने मातृक व पितृक पक्ष के उत्तराधिकारियों को जाएगी। यह निर्णय बहुत व्यापक महत्व रखता है क्योंकि इसने महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों को सशक्त और स्पष्ट बनाया।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय : Arunachala Gounder बनाम Ponnusamy (2022)

भारत के विधि-इतिहास में महिलाओं की संपत्ति पर उत्तराधिकार का प्रश्न सदैव विवादास्पद और संवेदनशील रहा है। हिंदू समाज में परंपरागत रूप से संपत्ति का हस्तांतरण पुरुष वंश पर केंद्रित रहा, किंतु संविधान और न्यायालयों के निरंतर प्रयासों से महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की दिशा में प्रगति हुई। Arunachala Gounder बनाम Ponnusamy का फैसला इन्हीं प्रयासों की एक कड़ी है जिसने स्पष्ट कर दिया कि महिला की अपनी पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार उसी परिवार के भीतर जाएगा, जिससे वह आई है, न कि केवल पति के परिवार तक सीमित रहेगा।

  1. वाद का पृष्ठभूमि (Background of the Case)

यह मामला तमिलनाडु से प्रारंभ हुआ। यहाँ एक महिला ने अपने पिता से पैतृक संपत्ति विरासत में पाई थी। महिला का निधन बिना वसीयत (intestate) और बिना संतान हुए हो गया। मृत्यु के बाद विवाद यह उठा कि यह संपत्ति किसे मिलेगी?

पति के परिवार का दावा था कि चूंकि महिला का विवाह उनके परिवार में हुआ था, इसलिए उसकी संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को मिले।

महिला के पैतृक परिवार (पिता के रिश्तेदार) ने कहा कि यह संपत्ति मूलतः पिता से मिली थी, इसलिए महिला की मृत्यु के बाद यह फिर से पैतृक वंश में लौटनी चाहिए।

यही विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

  1. विधिक प्रावधान (Relevant Legal Provisions)

मुख्यतः Hindu Succession Act, 1956 की धारा 15 (Section 15) इस विवाद का केंद्र बिंदु रही।

धारा 15(1): यह बताती है कि एक महिला हिंदू की मृत्यु पर उसकी संपत्ति किस क्रम में जाएगी। इसमें पति, पुत्र, पुत्री और उनके उत्तराधिकारी पहले आते हैं।

धारा 15(2): इसमें विशेष प्रावधान है कि –

यदि महिला को पिता या माता से संपत्ति मिली है और उसकी मृत्यु बिना संतान के होती है, तो वह संपत्ति माता-पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी।

यदि संपत्ति पति या सास-ससुर से मिली है और महिला संतानविहीन मृत्यु को प्राप्त होती है, तो वह संपत्ति पति के उत्तराधिकारियों को जाएगी।

इस धारा का आशय यह है कि पैतृक संपत्ति अपने मूल वंश में लौटेगी।

  1. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (Supreme Court’s Ruling)

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि –

  1. यदि कोई महिला हिंदू बिना संतान मरे और उसके पास माता-पिता से विरासत में मिली संपत्ति है, तो यह संपत्ति पति या पति के परिजनों को नहीं जाएगी।
  2. ऐसी संपत्ति पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी।
  3. धारा 15(2) का उद्देश्य ही यही है कि संपत्ति अपने मूल स्रोत की ओर लौटे।

अतः, कोर्ट ने महिला के पैतृक परिवार के दावे को सही ठहराया और कहा कि संपत्ति महिला के पति के परिवार के पास नहीं जाएगी।

  1. न्यायालय का तर्क (Reasoning of the Court)

(क) न्याय का सिद्धांत: यह उचित नहीं कि पिता की कमाई और संपत्ति विवाह के माध्यम से पूरी तरह पति के परिवार में चली जाए। यह महिला के पैतृक परिवार का भी अधिकार है।

(ख) विधायिका का उद्देश्य: धारा 15(2) का स्पष्ट अभिप्राय यह है कि संपत्ति अपने मूल स्रोत के उत्तराधिकारियों को लौटे।

(ग) लैंगिक न्याय (Gender Justice): महिला की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति केवल पति के परिवार को दे देना पुरुषवादी परंपरा का समर्थन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस परंपरा को नकारा।

(घ) सामाजिक संतुलन: यदि महिला के मायके का कोई उत्तराधिकारी जीवित है, तो उन्हें वंचित नहीं किया जा सकता।

  1. न्यायालय द्वारा दिए गए प्रमुख बिंदु
  2. Sapinda और Bandhu की अवधारणा:
    पत्नी विवाह के बाद पति की Sapinda बन जाती है, लेकिन बेटी का बेटा gotraja sapinda नहीं कहलाता, बल्कि bandhu कहलाता है, क्योंकि उसका संबंध स्त्री के माध्यम से है।
  3. पुरुष और स्त्री उत्तराधिकार में भेद:
    यदि कोई पुरुष हिंदू बिना वसीयत मरता है, तो उसकी संपत्ति पुत्र-पुत्री में बराबर बंटेगी। पुत्री को अन्य कोलैटरल्स (collaterals) पर प्राथमिकता दी जाएगी।
  4. उत्तराधिकार की श्रृंखला (Order of Succession):
    मिताक्षरा कानून (Mitakshara Law) और मुल्ला की पुस्तक Principles of Hindu Law में उत्तराधिकार की क्रमबद्ध सूची दी गई है, जिसमें पहले पुत्र, फिर पौत्र, फिर प्रपौत्र, फिर विधवा, पुत्री, पुत्री का पुत्र, पिता आदि आते हैं।
  5. सामाजिक और विधिक महत्व (Social and Legal Significance)
  6. महिला के अधिकारों की सुरक्षा:
    इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि महिला की पैतृक संपत्ति उसके अपने मायके के परिजनों को ही मिलेगी।
  7. पितृसत्तात्मक सोच पर चोट:
    निर्णय ने उस सोच को अस्वीकार किया जिसमें विवाह के बाद महिला को केवल पति के परिवार से जोड़ा जाता है।
  8. कानूनी स्पष्टता:
    पहले इस प्रावधान को लेकर अदालतों में भिन्न-भिन्न व्याख्याएँ होती थीं। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सदा के लिए स्पष्ट कर दिया।
  9. नारी सशक्तिकरण:
    यह निर्णय महिला की संपत्ति पर उसके मायके के अधिकार को मान्यता देता है, जिससे नारी गरिमा को बल मिला है।
  10. तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Analysis)

पारंपरिक हिंदू विधि: पहले महिलाओं को संपत्ति का अधिकार लगभग नहीं था।

1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम: इसने महिला को संपत्ति का उत्तराधिकारी माना।

2005 संशोधन: पुत्रियों को पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिला।

2022 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला: यह सुनिश्चित करता है कि महिला द्वारा विरासत में पाई गई पैतृक संपत्ति उसके मायके में ही लौटेगी, यदि वह संतानविहीन मृत्यु को प्राप्त होती है।

  1. आलोचनात्मक दृष्टि (Critical Evaluation)

सकारात्मक पक्ष:

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा।

परिवारिक संतुलन की स्थापना।

विधिक अस्पष्टताओं का समाधान।

संभावित प्रश्न:

क्या यह प्रावधान कभी पति के परिवार को अन्यायपूर्ण ढंग से वंचित करेगा?

क्या संपत्ति का “मूल स्रोत” पहचानना व्यावहारिक रूप से कठिन हो सकता है?

फिर भी, न्यायालय ने माना कि यह व्याख्या विधायिका की मंशा के अनुरूप और सामाजिक न्याय के हित में है।

  1. निष्कर्ष (Conclusion)

Arunachala Gounder बनाम Ponnusamy का निर्णय केवल एक उत्तराधिकार विवाद का समाधान नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में नारी अधिकार और न्याय की स्थापना की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया कि—

महिला की पैतृक संपत्ति उसके मायके के उत्तराधिकारियों को ही जाएगी, यदि वह संतानविहीन हो।

पति का परिवार उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकता।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(2) का मूल उद्देश्य यही है कि संपत्ति अपने स्रोत की ओर लौटे।

यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के gender sensitive approach का प्रत्यक्ष उदाहरण है। आज जब समाज लैंगिक समानता की ओर बढ़ रहा है, यह फैसला उस दिशा में एक मील का पत्थर है।

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