“फोन पर कानूनी सलाह न दें – सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को स्पष्ट निर्देश दिए”
प्रस्तावना
वकील और मुवक्किल का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है। मुवक्किल अपने सवाल, समस्याएँ और उलझनें वकील के सामने खुलकर रखता है। लेकिन यह संवाद कितना सुरक्षित है? सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वकीलों को चेतावनी दी है कि फोन पर दी गई कानूनी सलाह भविष्य में सबूत के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है और इस कारण वकील स्वयं ट्रायल का सामना करने की स्थिति में आ सकता है।
🛑 फोन पर सलाह देने का खतरा
बातचीत रिकॉर्ड होकर अदालत में सबूत के तौर पर पेश की जा सकती है। आज के डिजिटल युग में लगभग हर मोबाइल में कॉल-रिकॉर्डिंग की सुविधा होती है। मुवक्किल या कोई तीसरा व्यक्ति भी वकील से हुई बातचीत रिकॉर्ड कर सकता है। बाद में यही बातचीत Evidence Act, 1872 की धारा 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक सबूत के रूप में अदालत में प्रस्तुत की जा सकती है। ऐसे में वकील द्वारा अनजाने में दी गई कोई भी सलाह उसके खिलाफ इस्तेमाल हो सकती है। इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए फोन पर विस्तृत चर्चा से बचना आवश्यक है।
🛑 अपूर्ण जानकारी से गलत सलाह की संभावना
फोन पर मुवक्किल से सभी तथ्य, दस्तावेज़ या परिस्थिति समझना कठिन होता है। अधूरी जानकारी के आधार पर दी गई सलाह गलत साबित हो सकती है। मुवक्किल उस गलत सलाह पर अमल करके बड़े संकट में फँस सकता है, और उसकी जिम्मेदारी सीधे वकील पर आ सकती है। आमने-सामने मिलकर, दस्तावेज़ देखकर और पूरी परिस्थिति समझकर दी गई सलाह हमेशा अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय होती है।
🛑 Advocates Act व Bar Council Rules के तहत गोपनीयता का खतरा
Advocates Act, 1961 और Bar Council of India Rules के अनुसार, वकील का नैतिक और कानूनी दायित्व है कि वह अपने मुवक्किल की जानकारी और संवाद को गोपनीय रखे। फोन पर हुई बातचीत आसानी से रिकॉर्ड या फॉरवर्ड की जा सकती है।
