Smt. Bacchi Devi v/s State Of U.P. App. U/s 528, BNSS No. – 6400/2025…

(i) प्रथम उपस्थिति पर अभिरक्षा निषिद्ध— यह स्पष्ट रूप से निर्देशित किया जाता है कि जहाँ आरोपपत्र बिना पूर्व गिरफ्तारी दाख़िल किया गया है (चाहे जाँच के दौरान अभिरक्षा में पूछताछ की आवश्यकता न रही हो अथवा अभियुक्त ने अग्रिम जमानत/संरक्षण आदेश प्राप्त कर विधिवत सहयोग किया हो), वहाँ समन की तामील के उपरान्त अभियुक्त की प्रथम उपस्थिति पर उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेजना निषिद्ध होगा। ऐसे मामलों में अभियुक्त को प्रारम्भ में व्यक्तिगत बंधपत्र प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया जाएगा; आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय उपरान्त चरण में ज़मानतदार की शर्त आरोपित कर सकेगा।

(ii) व्यक्तिगत बंधपत्र के अधिकार की अनिवार्य उद्घोषणा— यह अनिवार्य है कि प्रक्रमण की प्रमुख अवस्थाओं पर (दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 88, 170, 204, 209 एवं भारत न्याय संहिता, 2023 की धारा 91, 190, 227, 232) न्यायालय स्पष्ट रूप से अभियुक्त को उसके इस विधिक अधिकार की उद्घोषणा करे कि वह सर्वप्रथम व्यक्तिगत बंधपत्र प्रस्तुत कर सकता है। यदि परिस्थितियाँ अपेक्षित हों तो पश्चात् ज़मानतदार की शर्त आरोपित की जा सकती है।

(iii) उपस्थिति उपरान्त त्वरित कार्यवाही— समन के अनुपालन में अभियुक्त के न्यायालय सम्मुख उपस्थित होते ही, न्यायालय तत्क्षण भारत न्याय संहिता की धारा 230 एवं 231 का अनुपालन करेगा तथा, आवश्यकता पड़ने पर, प्रकरण को सत्र न्यायालय को प्रतिबद्ध करेगा और विचारण की आगामी अवस्था में बिना अनावश्यक विलम्ब प्रविष्ट होगा।

(iv) जमानत-संरक्षण आदेश का विस्तार— संविधान के अनुच्छेद 226 अथवा भारत न्याय संहिता की धारा 528 के अधीन पारित ऐसे आदेश, जिनमें आरोपपत्र दाख़िल होने तक “गिरफ्तारी न की जाए” अथवा “प्रतिकूल कार्रवाई स्थगित रहे” जैसी सुरक्षा प्रदान की गई हो, उन्हें विचारण की समाप्ति तक प्रभावशील एवं प्रवर्तनीय माना जाएगा।

(v) अभियोजन द्वारा अनुचित अभिरक्षा का अभिलेखन— प्रत्येक ज़िले के संयुक्त निदेशक (अभियोजन) यह सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे प्रत्येक प्रकरण का पृथक्-पृथक् अभिलेख रखा जाए, जहाँ विचारण न्यायालय ने आरोपपत्र बिना पूर्व गिरफ्तारी दाख़िल होने की स्थिति में भी अभियुक्त को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा हो, जो उच्चतम न्यायालय के प्रामाणिक निर्णयों के प्रतिकूल है।

(vi) ज़िला न्यायाधीशों द्वारा मासिक प्रतिवेदन— प्रत्येक ज़िला न्यायाधीश यह सुनिश्चित करेंगे कि मासिक आधार पर उच्च न्यायालय को विस्तृत अनुपालन प्रतिवेदन प्रेषित किया जाए, जिसमें (a) इल्लीगल रिमांड वाले प्रकरणों का ब्यौरा, (b) आयोजित न्यायिक प्रशिक्षण एवं प्राप्त प्रतिपुष्टि, तथा (c) सतीन्दर कुमार अन्तिल वाद के आलोक में संपन्न विधिक जागरूकता शिविरों का विवरण समाविष्ट हो।

(vii) अनिवार्य न्यायिक विमर्श एवं प्रमाणन— प्रत्येक ज़िला न्यायाधीश यह दायित्व निर्वहन करेंगे कि इस आदेश/निर्णय की प्रति सभी अधीनस्थ न्यायाधीशों को प्रसारित कर, उसे “पढ़ा गया, समझा गया तथा सहकर्मी न्यायाधीशों के साथ विचार-विमर्श किया गया” के रूप में प्रमाणित कराया जाए। इस पर सामूहिक न्यायिक विमर्श उपरान्त तत्काल अनुपालन प्रतिवेदन महानिबंधक को प्रेषित किया जाए। मात्र “देखा गया” का उल्लेख पर्याप्त नहीं होगा।

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