साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत किए भी संगृहीत सामग्री/साक्ष्य साबित करना जाँच अधिकारी (Investigating Officer) की जिम्मेदारी है और यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वह स्वैच्छिक था तथा किसी भी प्रकार के भय, दबाव या जोर-जबरदस्ती के प्रभाव में नहीं दिया गया था। जाँच अधिकारी को यह भी सिद्ध करना होगा कि सूचना/स्वीकृति ज्ञापन (information/confessional memo) की सामग्री, जहाँ तक वह खोजे गए तथ्यों से संबंधित है, सही है। यह स्थापित विधि है कि धारा 27 के तहत दिए गए बयान का स्वीकारोक्ति वाला भाग अप्रासंगिक है और केवल वही भाग साक्ष्य में स्वीकार्य है जो स्पष्ट रूप से किसी तथ्य की खोज की ओर ले जाता है।
जाँच अधिकारी, जब गवाही देने के लिए कटघरे में आता है, तो उसे यह बताना होगा कि अभियुक्त ने उससे क्या कहा था। जाँच अधिकारी मूल रूप से अभियुक्त और उसके बीच हुई बातचीत की जानकारी देता है, जिसे लिखित रूप में लिया गया था और जिसके परिणामस्वरूप आपत्तिजनक तथ्य सामने आए। मौखिक साक्ष्य के मामले में कोई द्वितीयक/सुनी-सुनाई गवाही नहीं दी जा सकती, सिवाय उन परिस्थितियों के जो विशेष रूप से उल्लेखित हैं।
जाँच के दौरान जाँच अधिकारी द्वारा तैयार किए गए ज्ञापन को केवल प्रस्तुत कर देना इसकी सामग्री के प्रमाण के लिए पर्याप्त नहीं है। शपथ के साथ गवाही देते समय, जाँच अधिकारी को उन घटनाओं का क्रमवार विवरण देना होगा, जो अभियुक्त के बयान को दर्ज करने तक हुई थीं।