Legal update

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एनडीपीएस एक्ट की धारा 36A(4) – 180 दिनों की वैधानिक अवधि के बाद अभियुक्त की हिरासत के लिए लोक अभियोजक की रिपोर्ट अनिवार्य : पी एंड एच हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 36-ए (4) के अनुसार जांच की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 180 दिनों की वैधानिक अवधि बढ़ाने के लिए इस संबंध में लोक अभियोजक की रिपोर्ट द्वारा अनिवार्य रूप से दायर की जानी चाहिए।

जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की बेंच ने यह टिप्पणी की

🟢 ” …यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36-ए के तहत जांच की समय अवधि को यांत्रिक रूप से नहीं बढ़ाया जा सकता। जहां तक जांच एजेंसी के लिए समय बढ़ाने का विकल्प नहीं छोड़ा गया है, विधायी मंशा काफी स्पष्ट है। प्रासंगिक प्रावधान स्पष्ट रूप से प्रदान करते हैं कि न्यायालय समय सीमा का विस्तार दे सकता है लेकिन केवल लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट पर।”

🔵 संदर्भ के लिए सीआरपीसी की धारा 167(2) के साथ-साथ एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36ए(4) को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि यदि 180 दिनों की निर्धारित अवधि की समाप्ति पर किसी विशेष एनडीपीएस अधिनियम में जांच मामला अभी भी अधूरा है, अभियुक्त के पक्ष में जमानत का अपरिहार्य अधिकार प्राप्त होता है।

🟢 हालांकि, एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36ए (4) के प्रावधान के अनुसार, यदि 180 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर जांच पूरी करना संभव नहीं है तो विशेष अदालत उक्त अवधि को लोक अभियोजक की रिपोर्ट पर, जिसमें जांच की प्रगति और एक सौ अस्सी दिनों की उक्त अवधि के बाद आरोपी को हिरासत में लिए जाने के विशिष्ट कारण दर्शाए गए हों, एक वर्ष तक बढ़ा सकती है।

संक्षेप में मामला

मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता-आरोपी पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 22 (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया और 1 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद जांच एजेंसी द्वारा अप्रैल 13, 2023 को फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी की रिपोर्ट के बिना चालान पेश किया गया।

🔴 चूंकि याचिकाकर्ता-आरोपी को 1 नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था, इसलिए एनडीपीएस अधिनियम के तहत जांच पूरी करने की वैधानिक अवधि, यानी 180 दिन, 1 मई, 2023 को समाप्त होनी थी। हालांकि, उस समय तक भी एफएसएल रिपोर्ट जांच एजेंसी द्वारा दायर नहीं की गई थी।

🟣 इसलिए अभियुक्त ने इस मामले में जमानत के लिए विशेष अदालत का रुख किया और तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत एक अपरिहार्य अधिकार अर्जित हो गया है, क्योंकि जांच एजेंसी ने 180 दिनों के भीतर जांच पूरी नहीं की।

🟡 हालांकि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सोनीपत ने 4 मई को याचिकाकर्ता की जमानत याचिका खारिज कर दी। इसके बजाय, अदालत ने इस आधार पर जांच की अवधि बढ़ा दी कि जांच एजेंसी ने पहले ही अंतिम रिपोर्ट इस स्पष्टीकरण के साथ पेश कर दी थी कि एफएसएल रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।

🟠 अभियुक्त ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें उसके वकील ने तर्क दिया कि यह लोक अभियोजक का कर्तव्य है कि वह एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने की मांग के लिए अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते, इसके बाद ही संबंधित न्यायालय द्वारा जांच की अवधि में विस्तार दिया जा सकता था।

हाईकोर्ट की टिप्पणियां

⏹️ शुरुआत में अदालत ने कहा कि यदि एनडीपीएस अधिनियम के तहत किसी विशेष मामले में जांच एजेंसी द्वारा 180 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर चालान पेश किया जाता है तो एफएसएल रिपोर्ट चालान का एक हिस्सा होनी चाहिए क्योंकि यह कथित रूप से बरामद पदार्थ की प्रकृति का निर्धारण करने वाले कारक,में से एक होगा।

⏺️ इसके अलावा, न्यायालय ने अजीत सिंह @ जीता और अन्य बनाम पंजाब राज्य के मामले में हाईकोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह माना गया था कि एफएसएल रिपोर्ट के बिना दायर किया गया चालान प्रश्नगत पदार्थ की प्रकृति के संबंध में अधूरा चालान होगा और ऐसी परिस्थितियों में अभियुक्त डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने का हकदार होगा ।

▶️ अदालत ने कहा कि चूंकि मौजूदा मामले में, 01 मई, 2023 को 180 दिनों की समाप्ति पर भी, एफएसएल रिपोर्ट दायर नहीं की गई थी, इसलिए, एफएसएल रिपोर्ट की अनुपस्थिति में, पेश किया गया चालान अधूरा माना जाता है।

न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि समय बढ़ाने की मांग करते हुए लोक अभियोजक की कोई रिपोर्ट दायर नहीं की गई, निचली अदालत ने आरोपी को जमानत देने से इनकार करके एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36-ए (4) के प्रावधानों की गलत व्याख्या की।

👉🏽 नतीजतन, यह मानते हुए कि चूंकि याचिकाकर्ता ने डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत एक आवेदन दायर किया था, उस तारीख पर जांच अधूरी थी, अदालत ने उसे ट्रायल कोर्ट/मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अनुसार सीआरपीसी की धारा 167 (2)के संदर्भ में जमानत दे दी।

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