
⚖️न्याय में देरी न्याय से इनकार के समान है
भारत की अदालतें अभूतपूर्व लंबित मामलों के बोझ तले दबी हुई हैं – 5.3 करोड़ मामले लंबित हैं।
आम नागरिकों के लिए, इसका मतलब है सालों… यहाँ तक कि दशकों तक इंतज़ार, हमारी न्याय प्रणाली में विश्वास का क्षरण और शीघ्र सुनवाई के संवैधानिक अधिकार का हनन।
देरी क्यों?
❌वकील और गवाहों का न आना
❌आरोपी का फरार होना
❌अंतहीन स्थगन और स्थगन ❌बार-बार, अप्रासंगिक पूछताछ
यह जारी नहीं रह सकता।
आगे का रास्ता स्पष्ट है:
💡तकनीकी समाधान – स्मार्ट शेड्यूलिंग, डिजिटल साक्ष्य, सुरक्षित वीडियो गवाही, एआई-आधारित केस-फ्लो ट्रैकिंग
⚖️ सांस्कृतिक सुधार – स्थगन पर सख्त सीमाएँ, देरी की रणनीतियों के लिए जवाबदेही, प्रासंगिक गवाही पर अधिक ध्यान
न्याय अंतहीन सुनवाई की माँग नहीं करता।
इसके लिए सटीकता, निष्पक्षता और समय पर निर्णय की आवश्यकता है।
👉अब सवाल यह नहीं है कि क्या किया जाना चाहिए। सवाल यह है कि हम कब कार्रवाई करेंगे?
स्रोत: राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी), 25 सितंबर, 2025 तक।
