Bar Council of Maharashtra and Goa vs. Rajiv Nareshchandra Narula and Ors…

⚖️👉 वकील के खिलाफ बेबुनियाद शिकायत पर सुनवाई के लिए महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया
👉 Case Title – Bar Council of Maharashtra and Goa v. Rajiv Nareshchandra Narula and Ors.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 सितंबर) को एक वकील के खिलाफ बेबुनियाद शिकायत पर सुनवाई के लिए महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना उस वकील को देना होगा, जिसने कार्यवाही का सामना किया था। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल (BCMG) द्वारा दायर उस अपील पर दिया, जिसमें वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक लगाने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई।
यह मामला महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल के समक्ष दायर शिकायत से उत्पन्न हुआ, जिसमें 1985 के एक दीवानी मुकदमे में समझौते की शर्तों के संबंध में वकील द्वारा कदाचार का आरोप लगाया गया, जिसमें वकील ने वादी का प्रतिनिधित्व किया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि 1 जुलाई, 2005 की सहमति शर्तों और 24 अगस्त, 2005 की पूरक सहमति शर्तों के ज़रिए उसके साथ धोखाधड़ी की गई और आरोप लगाया कि उसकी संपत्ति को धोखाधड़ी से उन शर्तों में शामिल किया गया।
6 जुलाई, 2023 को BCMG ने विस्तृत जांच और निपटान के लिए एडवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 35 के तहत शिकायत को अपनी अनुशासन समिति को भेज दिया। एडवोकेट ने इस आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कहा कि न तो शिकायतकर्ता, न ही उसके पिता या पिता की फर्म 1985 के मुकदमे में पक्षकार थे। अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता ने धोखाधड़ी के आधार पर सहमति शर्तों को रद्द करने के लिए पहले ही आवेदन दायर कर दिया था और सवाल किया कि पक्षों द्वारा की गई किसी भी कथित धोखाधड़ी के लिए वादी का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने गीता रामानुग्रह शास्त्री बनाम महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल मामले में अपने पूर्व के फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने वादियों द्वारा अनुशासनात्मक शिकायतें दायर करके विरोधी वकीलों को धमकाने की बढ़ती प्रथा पर ध्यान दिया था। हाईकोर्ट ने माना कि प्रथम दृष्टया एडवोकेट की ओर से कोई धोखाधड़ी नहीं पाई गई और बार काउंसिल के पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि वकील अनुशासन समिति को संदर्भित करने योग्य कदाचार का दोषी है। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने एडवोकेट के विरुद्ध आगे की अनुशासनात्मक कार्यवाही पर रोक लगा दी। BCMG ने इस आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर की।

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