भारतीय दण्ड संहिता, 1860—धारा 406 एवं 420—आपराधिक न्यासभंग एवं धोखाधड़ी—मौखिक विक्रय अनुबंध—सिविल विवाद को आपराधिक स्वरूप देना—विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग—प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) निरस्त—प्रथम सूचना रिपोर्ट में आरोप था कि अभियुक्तगण ने संपत्ति विक्रय हेतु मौखिक रूप से सहमति दी थी, किंतु विक्रय निष्पादित नहीं किया गया—बाद में वादी द्वारा दायर दीवानी वाद में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया कि उक्त लेन-देन एक निश्चित प्रतिफल पर आधारित था—प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं सिविल वाद-पत्र (plaint) के बीच विरोधाभास यह दर्शाता है कि एक पूर्णतः दीवानी प्रकृति के विवाद को दुर्भावनापूर्ण ढंग से आपराधिक मुकदमेबाजी का रूप दे दिया गया—एक मूलतः दीवानी विषयक विवाद में आपराधिक कार्यवाही विधिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है—अभियुक्त की गिरफ्तारी एवं हिरासत, जबकि न तो कोई आपराधिक आशय सिद्ध हुआ और न ही कोई धोखाधड़ीपूर्ण प्रलोभन, पुलिस तंत्र के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है—प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं उसपर आधारित समस्त कार्यवाहियाँ, आपराधिक विधि के दुरुपयोग के आधार पर निरस्त की जाती हैं—परिवादी पर ₹10,00,000 (दस लाख रुपये) का जुर्माना लगाया जाता है जो कि दुर्भावनापूर्ण एवं उत्पीड़क मुकदमेबाजी के दण्ड स्वरूप है—अपील स्वीकृत।

