वक़्फ़ क्या है?
वक्फ़ इस्लामिक नियमों के अनुसार वह संपत्ति है जो केवल और केवल मज़हबी और दान के कार्यों में प्रयुक्त हो सकती है।
नया क़ानून पुराने से भिन्न कैसे है?
1- पुराने क़ानून में वक़्फ़ बोर्ड किसी भी प्रॉपर्टी पर दावा कर सकती थी, जिसके निस्तारण के लिए वक्फ़ ट्रिब्यूनल में ही जाना होता था। ट्रिब्यूनल के निर्णय को अंतिम निर्णय माना जाता था।
नए क़ानून के अंतर्गत अब विरोधी पक्ष 90 दिन के भीतर हाईकोर्ट में जा सकता है और उसके बाद की कार्रवाई सामान्य मामलों की तरह चलेंगे।
2- पुराने क़ानून के अंतर्गत केवल मुसलमान ही वक़्फ़ बोर्ड के सदस्य हो सकते थे।
नए नियम के अंतर्गत कम से कम दो सदस्य ग़ैर मुस्लिम होने अनिवार्य हैं ताकि ग़ैर मुस्लिमों के जमीनों पर क़ब्ज़ा करने के मामले में वक्फ़ बोर्ड के भीतर ही कोई व्यक्ति आवाज उठाने वाला हो। इसी तरह दो मुस्लिम महिलाओं को भी अब प्रतिनिधित्व देना अनिवार्य कर दिया गया है।
3- पुराने क़ानून में वक़्फ़ के अंतर्गत वक्फ़ अपने ही क़ब्ज़े को सही ग़लत जांचने के लिए स्वतंत्र था जो कि वक्फ़ को तानाशाही बनाता था।
नए क़ानून के अंतर्गत अब केवल वही प्रॉपर्टी वक़्फ़ की मानी जाएगी जो अभी तक उसके पास बिना विवाद के है। वो सारी प्रॉपर्टी चाहे वह कभी का हो, यदि उस पर न्यायालय में, पुलिस के किसी प्रकार का पूर्व में शिकायत और विवाद है तो उसे वक्फ़ का तब तक नहीं माना जाएगा जब तक कि उस पर अंतिम निर्णय न आ जाए।
4- पहले वो संपत्ति जो वारिश के अभाव में लावारिश हो जाती थी, वह अपने आप वक्फ़ की हो जाती थी। जिस कारण लगातार वक्फ़ की संपत्ति बढ़ती जा रही थी और यह संपत्तियां आम मुसलमानों की थी।
नए क़ानून के तहत अब संपत्ति में बेटियों को भी अधिकार रहेगा और उनको संपत्ति देने से मना नहीं किया गया है तो उन्हीं को वह संपत्ति मिलेगी, न की वक़्फ़ को।
5- वक्फ़ बोर्ड के संदर्भ में पहले केंद्र सरकार न नियम बना सकती थी, न उसके लिए दिशा निर्देश जारी कर सकती थी और न ही कैग ऑडिट कर सकता था।
अब नए कानून के आने बाद केंद्र सरकार वक्फ़ बोर्ड को लेकर नियम क़ानून बना सकती है, दिशा निर्देश जारी करेगी और कैग प्रति वर्ष अन्य विभागों की तरह ऑडिट भी करेगा।
6- पहले केवल सुन्नी और शिया वक़्फ़ बोर्ड होता था।
नए क़ानून के बाद आग़ाख़ानी और बोहरा अपना अलग से बोर्ड बना सकते हैं। मुसलमानों के भीतर के ये अलग अलग धड़े अब दोयम दर्जे के मुसलमान नहीं रहेंगे।
7- पहले वक्फ़ बोर्ड को कोई भी मुस्लिम अपनी संपत्ति दान कर सकता था।
नए क़ानून के बाद यह साबित करना अनिवार्य है कि दानकर्ता पिछले पाँच साल से इस्लाम मत को मान रहा है। इससे ग़ैर मुस्लिमों पर तुरंत दबाव बनाकर उनकी संपत्ति वक्फ़ के नाम लगवाकर उन्हें भगाने के प्रवृत्ति से राहत मिलेगी।