अनुकंपा नियुक्ति के लिए 5 वर्ष की समय-सीमा उस तिथि से शुरू होती है, जब कार्रवाई का कारण उत्पन्न होता है’: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट की जस्टिस पी.बी. बजंथरी और जस्टिस एस.बी. पीडी. सिंह की खंडपीठ ने उस निर्णय को चुनौती देने वाली अपील स्वीकार की, जिसमें कांस्टेबल के पद पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन इस आधार पर खारिज किया था कि 5 वर्ष की निर्धारित समय-सीमा के भीतर अधिकारियों के समक्ष आवेदन दायर नहीं किया गया। न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्ता अपने पिता की मृत्यु के ठीक बाद नियुक्ति के लिए आवेदन दायर नहीं कर सकता था, क्योंकि उनकी मृत्यु से छह महीने पहले ही उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। यह माना गया कि बर्खास्तगी आदेश रद्द करने के आदेश की तिथि से पांच वर्ष की समय-सीमा पर विचार किया जाना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता के पिता सत्येंद्र सिंह कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे। उन्हें 08.12.2004 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया और 09.12.2005 को उनकी मृत्यु हो गई।
बर्खास्तगी के आदेश के छह महीने बाद सत्येंद्र सिंह का निधन हो गया। उनकी पत्नी ने डी.आई.जी. के समक्ष अपील की और अपील 15.02.2006 को खारिज कर दी गई। बाद में उन्होंने डी.जी. सह आई.जी. के समक्ष एक स्मारक दायर किया, जिस पर भी यह कहते हुए विचार नहीं किया गया कि एक कर्मचारी की पत्नी को स्मारक दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।
अपीलकर्ता के पिता को सीनियर अधिकारियों के प्रति उनके अपमानजनक व्यवहार के आधार पर बर्खास्त कर दिया गया। इसके अलावा, उन्होंने नशे की हालत में दो राउंड फायरिंग भी की थी। नतीजतन, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई। अपीलकर्ता ने एकल जज के समक्ष तर्क दिया कि उनके पिता को दी गई सजा अत्यधिक थी, क्योंकि उनका बीस साल का अच्छा सेवा रिकॉर्ड था, जिसे उन्हें बर्खास्त करने से पहले ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सिंगल बेंच ने माना कि सत्येंद्र सिंह की पत्नी उनकी कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते किसी भी कानूनी उपाय की मांग करने की हकदार थी। डी.जी. सह आई.जी. को उनके स्मारक पर विचार करना चाहिए था। तदनुसार, अदालत ने डी.जी.- सह-आई.जी. को मृतक कांस्टेबल की पत्नी के ज्ञापन पर ज्ञापन दाखिल करने के 6 महीने के भीतर विचार करने का निर्देश दिया।
26.04.2011 को बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया गया और मृतक कांस्टेबल की पत्नी ने 01.10.2013 को अपने बेटे की कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, 26.04.2011 को कार्रवाई का कारण उत्पन्न हुआ, क्योंकि उक्त तिथि को बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया गया।
एकल जज पीठ ने अनुकंपा नियुक्ति मांगने में देरी के आधार पर आवेदन खारिज कर दिया। इसने पाया कि सत्येंद्र सिंह की मृत्यु के पांच साल के भीतर आवेदन दायर नहीं किया गया और इस प्रकार यह अस्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश से असंतुष्ट अपीलकर्ता ने डिवीजन बेंच के समक्ष अपील दायर की।
न्यायालय के निष्कर्ष:
न्यायालय ने पाया कि चूंकि अपीलकर्ता के पिता को 08.12.2004 को बर्खास्त कर दिया गया था। 09.12.2005 को उनकी मृत्यु हो गई, इसलिए मृतक की पत्नी और अपीलकर्ता दोनों ही बर्खास्तगी के आदेश के लागू रहने के कारण पांच वर्षों के भीतर अनुकंपा नियुक्ति की मांग नहीं कर सकते थे।
न्यायालय ने एकल जज के निर्णय की आलोचना की, जिसमें आवेदन खारिज करने से पहले इन तथ्यों पर विचार नहीं किया गया। इसने माना कि अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाली याचिका दायर करने का कारण बर्खास्तगी का आदेश रद्द करने की तिथि यानी 26.04.2011 को उत्पन्न हुआ। अपीलकर्ता और उसकी मां उससे पहले न्यायालय में नहीं आ सकते थे।
अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने की समय अवधि से संबंधित तकनीकी पहलुओं को खारिज करते हुए और यह देखते हुए कि अपीलकर्ता 26.04.2011 से शुरू होने वाले पांच वर्षों के भीतर आवेदन प्रस्तुत कर सकता है, न्यायालय ने अपील को अनुमति दी। इसने संबंधित अधिकारी को अपीलकर्ता की शिकायत की नए सिरे से जांच करने और तीन महीने की अवधि के भीतर एक विस्तृत आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: सनी कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य