Krishnapal singh v/s State of U.P.

प्रथम सूचना रिपोर्ट—विवेचनाधिकारी द्वारा अनुचित विवेचना—पीड़ित के समक्ष वैकल्पिक उपाय—यदि कोई प्रथम सूचनाकर्ता मानता है कि विवेचनाधिकारी द्वारा की जा रही विवेचना असमुचित या अनुचित है, तो वह धारा 156(3) दंड प्रक्रिया संहिता (धारा 173(4) बी०एन०एस०एस०) के तहत संबंधित थाने के मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत सकता है—यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट होते हैं, तो वह एफ.आई.आर. दर्ज करने या यदि एफ.आई.आर. पहले से ही दर्ज है तो उसमें उचित विवेचना करने का निर्देश दे सकते हैं, जिसमें आवश्यक होने पर विवेचना अधिकारी को बदलने की शक्ति भी निहित है—मजिस्ट्रेट विवेचना की निगरानी भी कर सकते हैं।

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