मात्र यह तथ्य कि नाबालिग़ बच्ची किसी व्यक्ति के कब्जे से मिली है धारा 363 IPC के अंतर्गत अपहरण का अपराध साबित नहीं करता है—अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि अभियुक्त वैध-अभिभावक की संरक्षकता से नाबालिग़ को बहला-फुसलाकर कहीं अन्यत्र ले गया—नाबालिग़ पीड़िता के सोचने-समझने के स्तर को भी देखा जाना चाहिए कि क्या अभियुक्त ने उसे कोई प्रलोभन दिया था—वर्तमान मामले में पीड़िता के पास शोर मचाने के कई अवसर उपलब्ध थे—पीड़िता स्वयं अभियुक्त के साथ उसकी मोटरसाईकल पर उसके साथ गई थी—यहाँ तक कि पीड़िता ने स्वयं अपनी मर्ज़ी से अपना घर छोड़ा था—अभियोजन पक्ष धारा 363 IPC के तहत आरोप साबित करने में विफल रहा है।

