धारा 397 IPC के अपराध के लिए सिर्फ उसी अभियुक्त को दण्डित किया जा सकता है जिसने अपराध में खतरनाक आयुध/शस्त्र का उपयोग किया हो। धारा 397 IPC किसी भी संयुक्त दायित्व (Constructive Liability) का गठन नहीं करती है।
धारा 397 IPC के अपराध की पूर्णता के लिए सिर्फ इतना ही पर्याप्त है कि अभियुक्त ने घातक आयुध/शस्त्र धारण किया हो ताकि पीड़ित को डराया-धमकाया जा सके।
श्री फूल सिंह बनाम दिल्ली प्रशासन, (1975) 1 SCC 797
दिलावर सिंह बनाम दिल्ली राज्य, (2007) 12 SCC 641
गणेशन बनाम राज्य द्वारा एस०एच०ओ०, दाण्डिक अपील सं०—903/2021
इन सभी केसेज में स्थापित विधि के अनुसरण में यह निष्कर्षित किया जा सकता है कि धारा 397 IPC के अन्तर्गत अपराध के गठित होने के लिए शस्त्र के उपयोग में यह आवश्यक नहीं है कि अपराधी वास्तव में आग्नेयास्त्र से फायर करे या चाकू/कटार से वार करे, बल्कि इन आयुधों/शस्त्रों का केवल प्रदर्शन, भाँजना (घुमाना) या पकड़े रहना ताकि पीड़ित के मन में आशंका या भय पैदा किया जा सके, पर्याप्त है।
