मात्र इसलिए कि एक आरोपी को आईपीसी की धारा 498-ए के अपराध के तहत दोषी पाया जाता है और मृत्यु विवाह के सात वर्षों की अवधि के भीतर हुई है, आरोपी को साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 ए के अन्तर्गत उपधारणा करके आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध के लिए स्वतः दोषी नहीं ठहराया जा सकता है । मृतक पीड़िता द्वारा दहेज की अवैध माँग की बाबत अपने पैरेंट्स के यहाँ जाने और उसके आत्म-हत्या करने के बीच दो महीने का अंतर है—इसलिए अभियुक्त द्वारा दहेज की अवैध माँग और पीड़िता के आत्म-हत्या का कोई सीधा सम्बन्ध स्थापित नहीं—अभियुक्त की धारा 306, IPC के अंतर्गत दोषसिद्धि अपास्त
हालाँकि दहेज की माँग के फलस्वरूप आत्म-हत्या के मामले में धारा 113-ए, साक्ष्य अधिनियम की उपधारणा अभियुक्त के विरुद्ध होती है, लेकिन ऐसा अपराध कारित किया गया है, इसे साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर होता है । 【पिनाकिन महीपात्रे रावल बनाम गुजरात राज्य, (2013) 10 SCC 48】